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सर्व-सेवा-संघ

सर्व-सेवा-संघ गांधी जी द्वारा या उनकी प्रेरणा से स्थापित रचनात्मक संस्थाओं तथा संघों का मिलाजुला संगठन है। संशोधित नियमों के संदर्भ में यह देशभर में फैले हुए “लोकसेवकों का एक संयोजक संघ” भी बन गया है।

सर्व सेवा संघ का प्रधान कार्यालय सेवाग्राम वर्धा और प्रकाशन कार्यालय राजघाट, वाराणसी में है।

उद्देश्य और नीति

सर्व-सेवा-संघ का उद्देश्य ऐसे समाज की स्थापना करना है, जिसका आधार सत्य और अहिंसा हो, जहाँ कोई किसी का शोषण न करे और जो शासन की अपेक्षा न रखता हो।

सर्व-सेवा-संघ शांति, प्रेम, मैत्री और करुणा की भावनाओं को जाग्रत करते हुए साम्ययोगी अहिंसक क्रांति के लिए स्वतंत्र जनशक्ति का निर्माण तथा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक साधनों का उपयोग करना चाहता है।

समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना और समय मानव व्यक्तित्व का विकास करना संघ की बुनियादी नीति होगी। इसके लिए संघ का प्रयत्न रहेगा कि समाज में जाति, वर्ण, लिंग आदि तत्वों के आधार पर ऊँच नीच का भेदभाव निर्मूल हो, वर्गसंघर्ष के स्थान पर वर्गनिराकरण और स्वेच्छा से परस्पर सहकार करने की वृत्ति बढ़े तथा खादी तथा विकेंद्रित अर्थव्यवस्था के माध्यम से कृषि, उद्योग आदि के क्षेत्र में आर्थिक विषमता का निरसन हो।

सर्वसेवासंघ की बुनियादी इकाई “प्राथमिक सर्वोदय मंडल” है, जो दस “लोकसेवकों” को लेकर बनता है। इससे संबद्ध देश के कुल 333 जिलों में से 203 जिलों में जिला सर्वोदय मंडल बने हैं। इस समय कुल 12 प्रादेशिक सर्वोदय मंडल हैं।

हर एक जिला सर्वोदय मंडल अपना एक प्रतिनिधि चुनता है। ऐसे प्रतिनिधियों को मिलाकर संघ की “आमसभा” बनती है। ऐसे सदस्यों के अलावा संघ के अध्यक्ष कुछ लोगों का संघ के सदस्य के रूप में नामजद भी करते हैं। इस समय 160 निर्वाचित सदस्य तथा 60 नामजद सदस्य हैं।

सदस्यता के नियम

सर्व-सेवा-संघ के सदस्य और लोकसेवक वे ही हो सकते हैं, जो सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह और शरीरश्रम में निष्ठा और तदनुसार जीवन बिताने की कोशिश करते हों; लोकनीति के द्वारा ही सच्ची स्वतंत्रता संभव है – इस मान्यता के आधार पर दलगत राजनीति तथा सत्ता की राजनीति से अलग रहते हों और किसी राजनीतिक पक्ष के सदस्य न हों। जाति, वर्ग या पंथ आदि किसी प्रकार के भेद को जीवन में स्थान न देते हों; तथा अपना पूरा समय और मुख्य चिंतन भूदानमूलक ग्रामोद्योगप्रधान अहिंसक क्रांति के काम में लगाते हों।

प्रवृत्तियाँ

सर्वसेवासंघ के द्वारा नीचे लिखे प्रवृत्तियाँ चलाई जाती हैं :

1. सर्वोदय सम्मेलन – सर्वोदय विचार में निष्ठा रखनेवालों का एक सम्मेलन हर दूसरे वर्ष संघ आयोजित करता है।

2. साहित्य प्रकाशन – गांधी, विनोबा, तथा सर्वोदय विचार के साहित्य का प्रकाशन और प्रसार करने के लिए संघ की ओर से एक “प्रकाशन समिति” बनी है। इसके द्वारा अब तक देश-विदेश की 16 विभिन्न भाषाओं में लगभग 900 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

3. शांति-सेना-मंडल – शांतिसेना का संगठन, संयोजन तथा शांति संबंधी कार्यक्रमों का आयोजन करने के लिए शांति-सेना-मंडल बना है। इस समय देश भर में लगभग 8,000 शांति सैनिक और 5,000 शांतिकेंद्र काम कर रहे हैं।

4. खादी ग्रामोद्योग ग्रामस्वराज्य समिति – खादी ग्रामोद्योग संस्थाओं के मार्फत देशभर में जो खादी ग्रामोद्योग का कार्य चल रहा है, उसकी नीति तथा कार्यक्रम में सर्वोदय विचार के आधार पर निर्देशन, समन्वय आदि काम के लिए यह समिति बनी है।

5. कृषि गोसेवा समिति – गोवंश को, विशेषत: गाय को, समाज में योग्य स्थान पर प्रतिष्ठित करने तथा आर्थिक दृष्टि से उपयोगी बनाने का राष्ट्रव्यापी आयोजन करना इस समिति का लक्ष्य है। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए गोसंवर्धन केंद्र, नंदीशाला, गोसदन, गोरस भंडार, गोशाला, चरागाह, चारे की खेती तथा अन्य कृषि सुधार के कार्य समिति कर रही है। भारत सरकार द्वारा गठित गोसंवर्धन कौंसिल भी इस समिति का सहयोग लेती है। प्रधान कार्यालय नई दिल्ली में है। पता, ठक्करबापा स्मारक सदन, यूलिंक रोड, झंडेवालान्, नई दिल्ली।

6. खादी ग्रामोद्योग प्रयोग समिति – कताई, बुनाई, कृषि तथा अन्य ग्रामोद्योगों के औजारों में शोध, अन्वेषण, सुघार आदि की दृष्टि से इस समिति का गठन हुआ है।

7. इन स्थायी प्रवृत्तियों के अलावा नई तालीम, सेवाग्राम आश्रम आदि का संयोजन संघ के मार्फत होता है। चंबल घाटी की बागी समस्या, पंचायत राज्य, कश्मीर समस्या आदि तात्कालिक प्रश्नों पर भी सर्व-सेवा-संघ अपने विचार के आधार पर हल ढूँढ़ने और तद्नुसार कार्य करने का प्रयत्न करता रहता है।